इन वजहों से मोदी सरकार साल 2018 के अंत में करा सकती हैं लोकसभा चुनाव
संवैधानिक रूप से चुनाव की तय मियाद के छह महीने पहले तक चुनाव कराए जा सकते हैं और इसके लिए संविधान में संशोधन की जरूरत नहीं पड़ेगी।
संवैधानिक रूप से चुनाव की तय मियाद के छह महीने पहले तक चुनाव कराए जा सकते हैं और इसके लिए संविधान में संशोधन की जरूरत नहीं पड़ेगी।
मोदी सरकार का कार्यकाल मार्च 2019 में समाप्त हो रहा है, जिसके बाद अप्रैल-मई, 2019 में लोकसभा चुनाव होने हैं। लेकिन राजनीती के गलियारों में कई महीने से यह चर्चा है कि मोदी सरकार इसी साल के अंत में लोकसभा चुनाव कराने का मूड बना चुकी है । संवैधानिक रूप से चुनाव की तय मियाद के छह महीने पहले तक चुनाव कराए जा सकते हैं और इसके लिए संविधान में संशोधन की जरूरत नहीं पड़ेगी। इस बात की कुछ हद तक पुष्टि बजट सत्र के पहले दिन राष्ट्रपति कोविंद के अभिभाषण से भी हो रही है।
आज बजट सत्र के पहले दिन राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने अपने पहले अभिभाषण में जब सरकार की पिछले पौने चार साल की उपलब्धियां गिनाते हुए लोकसभा और विधानसभा के चुनाव एक साथ होने की वकालत की । राष्ट्रपति ने कहा, ‘
गवर्नेंस के प्रति सजग लोगों में, देश के किसी न किसी हिस्से में लगातार हो रहे चुनाव से, पड़ने वाले विपरीत प्रभाव को लेकर चिंता है। बार-बार चुनाव होने से मानव संसाधन पर बोझ तो बढ़ता ही है, आचार संहिता लागू होने से देश की विकास प्रक्रिया भी बाधित होती है। इसलिए एक साथ चुनाव कराने के विषय पर चर्चा और संवाद बढ़ना चाहिए और सभी राजनीतिक दलों के बीच सहमति बनाई जानी चाहिए।
राजनीतीक जानकारों की मानें तो राष्ट्रपति का आज का अभिभाषण और सरकार से मिल रहे संकेतों से यह साफ़ दिख रहा है कि मोदी सरकार आम चुनाव 2018 के अंत तक करवाना चाहती है ।
मोदी सरकार क्यों आम चुनाव जल्दी करवाना चाहती है ?
2018 में कई बीजेपी शासित राज्यों में चुनाव:
इस साल के अंत में मध्यप्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव होने हैं। जबकि वहीं अगले साल 2019 में आंध्र प्रदेश, अरुणांचल, उड़ीसा, सिक्किम, महाराष्ट्र, हरियाणा, जम्मू-कश्मीर और झारखंड के विधानसभा चुनाव होने हैं । मोदी सरकार आम चुनाव इन सभी राज्यों के चुनाव के साथ करा सकती है । इनमें से ज्यादा जगह बीजेपी या उनकी सहयोगिओं की सरकार है । सरकार को डर है की अगर इन विधानसभा चुनावों का परिणाम नकारात्मक रहा तो लोकसभा चुनाव का परिणाम भी नकारात्मक देखने मिल सकता है ।
आम बजट के लोकलुभावन वादों का असर:
वित्त मंत्री अरुण जेठली 1 फरवरी को आम बजट पेश करने जा रही है और उम्मीद जताई जा रही है कि इस बार का बजट लोकलुभावन रहेगा । सरकार इस साल के बजट में किये गए घोषणाओं को हथियार बना कर चुनाव चुनावी अखाड़े में उतरना चाहती है ।
कमजोर विपक्ष से कम रहेगा खतरा :
आज की तारीख में विपक्ष कमजोर और अलग अलग है । सरकार इसी बात का फायदा उठाना चाहती है । राहुल गांधी का ग्राफ दिनों दिन बढ़ता जा रहा है । हाल ही में संपन्न गुजरात चुनाव में राहुल गांधी के लगातार दौरे से प्रधानमंत्री के गृहराज्य में भी भाजपा में बैचेनी का माहौल हो गया था । कांग्रेस भी बीजेपी के इस चाल से अवगत लगती है इसलिए राष्ट्रपति के अभिभाषण के बाद कांग्रेस के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने बजट सत्र के छोटा रहने पर नाखुशी जताते हुए कहा कि,
‘एक दिन प्रेजिडेंट का संबोधन होगा और एक दिन बजट पेश होगा। इसके अलावा दो दिन गैर-आधिकारिक बिलों पर चर्चा होगी। चार दिनों में कैसे महत्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा हो सकती है?’’ यह सिर्फ छलावा लग रहा है। ऐसा लग रहा है कि सरकार सिर्फ जैसे-तैसे यह काम पूरा करना चाहती है और चुनाव के लिए जाना चाहती है। ’
मीडिया में अचानक सक्रिय हो गए प्रधानमंत्री मोदी
मोदी सरकार के जल्दी चुनाव करवाने की पीछे अचानक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का मीडिया के प्रति उभरा प्यार को भी देखा जा रहा है । पिछले पौने चार साल में मीडिया से दूरी बनाते दिखने वाले मोदी पिछले कुछ दिनों से लगातार इंटरव्यू देते नजर आ रहे हैं । 2014 के आम चुनाव से पहले भी मोदी ने कई इंटरव्यू दिए थे और उन्हें इसका फायदा भी मिला था ।