सुशांत सिंह राजपूत केस/अन्वय नाईक केस :अर्नब गोस्वामी ‘नायक’ या ‘खलनायक’ ?
हर कहानी के कई पहलू होते है इसलिए अगर आपको कहानी की तह तक जाना हो तो ज़रूरी यह हैं की आप कहानी के हर किरदार का पक्ष सुने और वह भी बिना किसी किरदार के प्रति झुकाव रखे। यह कहना बहुत आसान हैं लेकिन एक मनुष्य होने के कारण कहानी शुरू करने के साथ हमारा झुकाव किसी ना किसी किरदार के तरफ हो जाता हैं। इस झुकाव की पीछे कई कारण हो सकते हैं।
दिसंबर के आख़िरी सप्ताह में न्यूज़ और एंटरटेनमेंट चैनल पर साल की सुर्खियां दिखाई जाती हैं। अगर किसी व्यक्ति को 2020 की टॉप 2 सुर्खियां चुननी हो तो एक कोरोना और दूसरी सुशांत सिंह राजपूत जैसे टैलेंटेड और बेहतरीन एक्टर की संद्घित मौत होगी।जब देश कोरोना से लड़ रहा था तभी सुशांत सिंह राजपूत की मौत की दिल दहलानी वाली खबर आई। सुशांत की मौत का खुल्लमखुल्ला राजनेताओं और मीडिया हाउस के द्वारा ऐसा तमाशा बनाया गया जिसकी जितनी भी निंदा की जाए कम होगी। सुशांत की मौत की मार्केटिंग कोई अपनी TRP बढ़ाने के लिए कर रहा था तो कोई टिकट पाने के लिए और कोई अपनी खुंनस निकालने के लिए।
सुशांत के रहस्यमयी मौत में ना कोई सुसाइड नोट मिला , ना ही जांच एजेंसी को कोई ऐसा सबूत मिला जो मर्डर की ओर इशारा करे। लेकिन देश के बड़े बड़े मीडिया हाउस ने जांच खत्म हुए बिना ही सुशांत मौत को मर्डर बोल कर मीडिया ट्रायल शुरू कर दिया ।रिपब्लिक टीवी के एडिटर इन चीफ अर्नब गोस्वामी ने हर दिन स्टूडियो में चीख-चीख कर सुशांत की मौत को मर्डर के रूप में पेश किया। रिपब्लिक टीवी के मीडियाकर्मियों ने कोरोना के समय में सोशल डिस्टेंसिंग और पर्सनल स्पेस की धज्जिया उड़ा दी ।इस दौरान अर्नब देश के सबसे सच्चे इंसान और सच के मसीहा के रूप में दिखाई दे रहे थे।
कुछ महीनों के बाद, 4 नवम्बर को महाराष्ट्र पुलिस ने अर्नब गोस्वामी को दो साल पुराने आत्महत्या के एक मामले में गिरफ्तार किया। यह केस कॉनकॉर्ड डिजाइन्स प्राइवेट लिमिटेड के प्रबंध निदेशक अन्वय नाईक और उनकी मां की खुदकुशी से संबंधित है। अन्वय नाईक ने अपनी सुसाइड नोट में अर्नब का नाम लिखते हुए उन पर बॉम्बे डाइंग स्टूडियो प्रॉजेक्ट के 83 लाख रुपयों का भुगतान नहीं करने का आरोप लगाया। अर्नब के अलावा IcastX के फ़िरोज़ शेख और स्मार्टवर्क के नितीश सारडा का भी नाम सुसाइड नोट में था। नाईक ने अपने सुसाइड नोट में अर्नब, फ़िरोज़ शेख और नितीश सारडा को मौत का जिम्मेदार मानते हुए उनसे मिले पैसो को लेनदारों को बाटने को कहा।
अर्नब वहीँ व्यक्ति है जो सुशांत के रहस्यमयी मौत में कोई भी सुसाइड नोट नहीं मिलने के वावजूद मीडिया ट्रायल कर केस के अभियुक्तो को जेल भेजने में अमादा थे । लेकिन 4 नवम्बर को जब महाराष्ट्र पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार किया तो उन्होंने और उनके रिपब्लिक टीवी ने इसे गलत करार दिया । 4 नवम्बर से रिपब्लिक टीवी को देश दुनिया में चल रही खबरों से कोई मतलब नहीं हैं वह सिर्फ अर्नब से संबंधित खबरे दिखा रहे हैं । अर्नब खुद को नेपोटिस्म के विरोधी के रूप में दिखाते है लेकिन पिछले कई दिनों से उनके अपने चैनल के द्वारा देश विदेश की बाकी ख़बरों को दरकिनार कर सिर्फ उनकी ख़बरों को दिखाना क्या नेपोटिस्म नहीं हैं ? रिपब्लिक टीवी सुशांत केस में बिना जाँच पड़ताल के इंतज़ार किए दोषियों को सजा देने की बात कर रही और अर्नब के गिरफ्तारी के बाद बिना जाँच के नतीजे इंतज़ार किए अर्नब को निर्दोष साबित कर चुकी है । अर्नब अपने शो में बोलते है “ Nation wants to know “ . अब नेशन वांट्स टू नो फ्रॉम अर्नब और रिपब्लिक टीवी से कि , अगर अर्नब दोषी है तो उन्हें अन्वय नाईक और उनकी मां को आत्महत्या करने पर मजबूर करने के लिये सख्त से सख्त सज़ा मिलनी चाहिये या नहीं ? कानून के सामने सब बराबर हैं तो अर्नब को विशेष सहूलियत क्यों मिलनी चाहिये? सुशांत और नाईक मौत में दोहरा चरित्र क्यों ?
अब केस के दुसरे पहलू की बात करते है । 2018 में महाराष्ट्र में बीजेपी की सरकार थी और पुलिस ने सुसाइड नोट में अर्नब का नाम होते हुए भी उन पर कोई करवाई नहीं की । रायगढ़ पुलिस ने अप्रैल 2019 में यह कहते हुए मामला बंद कर दिया था कि उन्हें सुसाइड नोट में नामजद आरोपियों के खिलाफ सबूत नहीं मिले हैं, जिनमें गोस्वामी भी शामिल हैं। 2020 में महाराष्ट्र में शिवसेना की सरकार हैं और पुलिस ने केस को दुबारा खोला और अर्नब को गिरफ्तार किया। इस घटनाकर्म को देख कर एक बात तो साफ़ हैं की या 2018 बीजेपी शासित महाराष्ट की पुलिस ने राजनीति दवाब में आ कर नाईक और उनकी मां की खुदकुशी की जाँच पड़ताल सही से नहीं की या 2020 शिवेसेना शासित महाराष्ट की पुलिस ने राजनीति दवाब में आ कर दुबारा केस को खोला। हमारे सिस्टम की कड़बी सच्चाई फिर से नाईक केस दिखाता हैं । देश और राज्य की जांच एजेंसी वहीँ जांच रिपोर्ट पेश करती जो सरकार चाहती है ।
बात जो भी सच हो लेकिन सवाल यह उठता है कि नाईक के परिवारवालों को क्या न्याय मिलेगा और मिलेगा तो कब ? सुशांत एक बड़े एक्टर थे और उनकी मौत के बाद देश और विदेश में justice4SSR का हैशटैग चलाया गया। लेकिन आज देश के लोग justice4Naik हैशटैग को क्यों नही ट्रेंड कर रहे है ? हमारे देश का यह दुर्भाग्य है की हमारा देश व्यक्ति विशेष पूजक देश है, जहाँ आम आदमी सिर्फ विशेष व्यक्ति का साथ देता है और उसे अपने जैसे आम आदमी की कोई भी फ़िक्र नहीं।